श्याम सुंदर चौधरी

अनूदित कविता: बांग्ला, सुभद्रा भट्टाचार्य की कविताएं

अंतिम संवाद

सोचती हूं
मेरा अंतिम संवाद क्या होगा? 
इस टूटे-फूटे जीवन की
सारी बातें ही क्या
मैंने जरूरी समझकर बोली थीं?
या अपनी बात अपनी ही तरह 
कही थीं
जैसे दागा जाता हो कोई तोप
मैंने सुना है
अपने पिता का अंतिम संवाद
हर मनुष्य के जीवन में
आरंभ की ही तरह
अंतिम बात भी होती है
लेकिन कौन विचार करता है
संवाद के आदि औ....

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