आलोक श्रीवास्तव की ‘महाकाव्यात्मक लंबी कविता’, ‘एक अमर नगर की गाथा’, एक गाथा कम, अपनी तरह का एक मिथक ज्यादा है। इसे हम किसी मिथकीय ‘अमर नगर’ की तरह, पूरी कविता में, अपने होने और न होने की स्थिति के बीच झूलता देखते हैं। यह नगर कहीं नहीं है और सब जगह है। ठीक वैसे ही, जैसे हम में किसी आत्मा अथवा ईश्वर के होने की बात उतनी ही सच होती है, जितनी उनके न होने की बात। मानव-जाति क....
