कृष्ण कल्पित

नामवर सिंह हिंदी कविता और आलोचना की राख 


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Remember, A statue has never been set up in honour of A critic. जीन सिवेलियस की इस बात का पूरब के एक आलोचक ने प्रत्याख्यान किया। नामवर सिंह ने अपने जीवन, लेखन और वाग्मिता से साबित किया कि आलोचक की भी प्रतिमा बन सकती है और आलोचना भी स्मारक हो सकती है!
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खुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
खुदा बने थे यगाना मगर बना न गया!
नामवर जी हर मुलाकात में कोई नया शे‘र, संस्कृत का कोई श्लोक या अप....

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