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खुशियों को और जाकर कहां ढूंढिए
इनको अपनों के ही दरमियां ढूंढिए
दी चुनौती है इक जलते दीपक ने ये
जो बुझा पाएं वो आंधियां ढूंढिए
पहले छिपता है फिर बोल देता भी है
मैं छिपा हूं कहां, मुझको मां ढूंढिए
वादे रहबर ने पूरे किए हो जहां
जाइए ऐसी कुछ बस्तियां ढूंढिए
नफरतों का यही....
