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शबे विसाल की यादें, बहार का मौसम
बढ़ा रहा है तपन इंतजार का मौसम
हैं बेकरार इधर हम वो बेक़रार उधर
कभी तो पास भी आए क़रार का मौसम
बुलंदियों पे भला कब ये वक़्त ठहरा है
न जाने कब चला आए उतार का मौसम
अगर सुकूं से बितानी है िज़ंदगी तुमको
तो आसपास न रहने दो रार का ....
