धान रोपती औरतें
घुटनों तक कीचड़ में धंसी
गीत गाती
धान रोपती औरतों का मुख
होता है पृथ्वी की तरह---
उनकी झुकी हुई पीठ पर
टेक लगाए बैठा होता है दिनमान
एक टक निहारता है
धरती के उभरते यौवन दृश्य को---
कीचड़ से लिथड़ी
उनकी निश्छल मुस्कान
होती है धरती की एक शानदार कविता
जिसे सुनने उमड़-घुमड़ आते हैं
श्रावण के बादल---
सबसे मोहक ह....
