रामशरण जोशी

मुक्ति 

लंबी कहानी: तीसरी किस्त

 

‘तुमने मुझे टोक कर ठीक किया। मैं तो अपनी धुन में बहती चली जा रही थी। स्त्री-पुरुष विमर्श को जितना विस्तार दो, उतना ही कम है। इसका कोई अंत नहीं है। यह शाश्वत विषय भी है और प्रश्न भी;
पौराणिक काल से आधुनिक काल तक यह विभिन्न रूपों में अनवरत जारी है। इसके पात्र और परिस्थितियां बदलती रहती हैं। बस!
उमा, तुमने मन के म....

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