मदन कश्यप

बौखलाहट की घनीभूत अभिव्यक्ति

लालकिला चाहे जितना लाल-पीला हो रहा हो लेकिन, एक उदासी थी, जो सतह पर तैरती दिख रही थी। आवाज में पहले वाली बुलंदी नहीं थी। बातें पहले जैसी ही घुमाई-फिराई जा रही थी। जुमले भी फेंके जा रहे थे, लेकिन आत्मविश्वास एकदम निचले पायदान पर था। प्रधानमंत्री जी का लालकिले से दिया गया यह अंतिम भाषण बहुत फीका-फीका था। इस ‘अंतिम’ शब्द पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगले स्वत....

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