कृष्ण कल्पित

पुरस्कार ही अब आलोचना है

टोकरी में पुरस्कार
इनाम ही इनाम थे ये रह गए वे पा गए
जो बेचते थे हिना-ए-सब्र वो दूकान अपनी बढ़ा गए!
पुरस्कार पहले भी थे लेकिन उनका इतना हल्ला न था। अब तो जैसे सब कुछ पुरस्कारमय है। हर सुबह पुरस्कारों की घोषणा होती है और शाम तक आसमानों में गर्द छाई रहती है। साहित्य की गुणवत्ता, मूल्यवत्ता और स्तरीयता कुछ नहीं। बस पुरस्कार ही सत्य है। और आश्चर्य की बात तो यह कि जैसे संप....

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