मुक्तिबोध की बीड़ी
तपती दोपहरी में
एक थके हुए मजदूर को
नए बन रहे मकान की दीवार से उठंग कर
बीड़ी पीते हुए देखा
तो सहसा याद आ गए कवि मुक्तिबोध
उनकी तस्वीर का
वही जाना-पहचाना चेहरा आ गया सामने
जो अक्सर कवि बनते हुए
हर किसी को दिखाई देता है
कवि ने किसी मजदूर की संगत में ही
सीखा होगा बीड़ी पीना
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