कृष्ण कल्पित

हिंदी साहित्य को एक नए नामवर की प्रतीक्षा

मंटो मंत्र
अकेले मंटो को छोड़कर समूचा उर्दू अदब शाइरी में गर्क है। ऐसा लगता है जैसे सारा उर्दू-साहित्य मीरो-गालिब और फिराको-फैज के यहां रहन पर रखा हुआ हो। कलीमुद्दीन अहमद गजल को यूं ही नीम-वहशी सिन्फ नहीं कहते हैं। नज्म तो नज्म नस्र में भी हर दूसरे पन्ने पर फारसी या उर्दू का कोई न कोई शे’र टंका मिलता है।
मेरी निगाह में अकेले मंटो हैं, जिनके समूचे लेखन में संस्....

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