राजनारायण बोहरे

अकिंचन

‘मैंने कुछ नहीं देखा! मैंने कुछ नहीं देखा’ जैसे लगते वाक्य अस्पष्ट सी भयभीत आवाज में बोलता हुआ वह अपने कानों पर हाथ रख कर सिकुड़कर बैठा हुआ सिसक रहा था। हम लोग हैरानी में डूबे उसे ताक रहे थे। भीखाराम तो लगभग रो ही उठा था।
यहां आए हुए इस लड़के को तीन दिन हो गए हैं। न रात को सोता है और न दिन को। हरदम भयग्रस्त इसकी आंखें फट पड़ने का आकुल सी लगती हैं। एक अजीब सी दहशत का भाव उ....

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