आलोचना निर्वैयक्तिक वैचारिकता व संवेदना की विशुद्ध आंखों से मनुष्य, समाज, परंपरा और संस्कृति को देखने तथा गढ़ने की व्यग्रता ही है। आलोचना ही व्यक्ति-समाज में बौद्धिक चेतना का बीज
विपणन करती है इसलिए यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि आज के समय में आलोचना तेजी से बदलते परिवेश से निपटने व अपने दायित्व का वहन करने में किस हद तक सक्षम है। विचारधारा कोई भी हो उसके केंद्र में ....
