स्मृतियों का कोलाज
सब कुछ याद आ रहा है। अबू धाबी जाने से पहले अपनी बेबसी के दिन। बेकारी के दिन। अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर अनिश्चितता में झूलते दिन। अखबार की नौकरी और कम मिलता वेतन। अजब दिन थे। मगर बीत रहे थे। कठिन से कठिन आर्थिक तंगी और संघर्ष के दिन भी मैंने कभी आत्मदया की दयनीयता में नहीं गुजारे। हमेशा एक विश्वास बना रहा कि कुछ भी कर लेने की किसी चुनौती से मुझे ....
