देवेंद्र पाठक महरूम

दुष्काल

कोरोना के दुर्दिनों में जब अधिकांश लोग अपने-अपने घरों में ही खुदकैदी बन जाने की अनैच्छिक बाध्यता भुगतने की दुर्नियति स्वीकार, सुरक्षित होने का सुकूनदेह वहम पाले मौत की दहशत से जूझ रहे थे, तब का ही यह वाकया है।
होली नहीं हुई थी, न उस बरस होने के कोई आसार ही थे। चार दिन-रात दूर थी अब होली, लेकिन इस साल मोहल्ले के छोकरों के पांवों में कोरोना होने के भय की अदृश्य जं....

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