एक नजर में यह अंक
अरसा बाद पाखी के पन्ने पलट रहा हूं। इसके स्तंभ, जिन्हें अरुण कमल, कृष्ण कल्पित, मदन कश्यप, मुकेश कुमार आदि लिख रहे हैं, पत्रिका को ताकत देने वाले हैं। कल्पित खरी और साहसी अंदाज में अपनी बातें दर्ज कर रहे हैं। कार्यकारी संपादक की ‘यूटोपिया’ संप्रति खतरे और आने वाले खतरे पर नजर रखती और सावधान करती लगी। ‘गांध....
