शोभना

इक्कीसवीं सदी में स्त्री अस्मिता का प्रतिमान

साहित्य के मंच पर प्रतिरोध के फैशन के लिए की गई रचना और स्त्री-पुरुष तक सीमित रोमांस साहित्य का लक्ष्य पूरा करते नहीं लगते हैं। यदि साहित्य समाज का आईना है तो फिर उसे स्पष्ट और ईमानदार होना चाहिए। इसे पुरानी स्थापना कहना चाहे तो कह लें कि ऐसा साहित्य जो अपने समय में हस्तक्षेप करता हो, फैशन या रोमांस न हो, बस वही साहित्य की सीमा में आता है लेकिन मेरा अब भी इसी पुर....

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