ठहरावों का इतिहास
सब ठहर गया है
जैसे कई दिनों तक न सोने पर
आंखों में ठहर जाती है नींद
बोझिल पलकों की ओट लिए
अंखों की पुतलियों के गहरे भंवर में
तैरते हुए!
लाशों के नगर को
मरे हुए फूलों से, बने इत्र की खुशबू से
महकाने की नाकाम कोशिश करते
कुछ काले बगुले सफेद जामा पहन
उड़ने की तैयारी में हैं
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