सविता सिंह

सविता सिंह की पांच कविताएं 

(वंदना टेटे के लिए)
दारुण समय 

अभी तक तिलिस्म टूटा नहीं
रात का विस्मय ज्यों का त्यों
सुबह होने को है
पौ फट चुकी है
हवा देह से अब भी लिपटी है
प्रेम उसी के आलिंगन में
अलसायी थिरायी शिथिल

सोचती हूं यह रात का असर है
अब तक बचा हुआ
या प्रेम सचमुच आया था
मेरे लिए
और मैंने नींद में स्वीकारा था उसे
उषा अप....

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