उस दिन अनिल के साथ साहित्य के आदर्श के निरंतर परिवर्तन के बारे में बात हो रही थीं। उस प्रसंग में मैंने कहा था कि भाषा साहित्य का वाहन है, समय-समय पर भाषा का रूप बदलता है, इसीलिए इसकी व्यंजना के अंतर्गत केवल तारतम्य ही होता है। इसे और भी साफ समझना जरूरी है।
मेरे जैसे गीति-कवि अपनी रचनाओं में विशेष रूप से इस रस का कारबार करते हैं। युग-युग में लोगों के मुंह में इस र....
