प्रज्ञा

सकर्मक सामाजिक प्रतिबद्धता का उपन्यास 

इक्कीसवीं सदी के हिंदी उपन्यासों में गांव की वापसी और किसानी जीवन का यथार्थ केंद्र में नए सिरे से स्थापित हुआ है। इस कथन की तस्दीक नई सदी के अनेक उपन्यास करते दिखाई देते हैं। वह चाहे पंकज सुबीर का ‘अकाल में उत्सव’ हो, संजीव का ‘फांस’ हो या फिर हाल ही में प्रकाशित राजनारायण बोहरे का ‘आड़ा वक्त’। ये सभी उपन्यास भूमंडलीकरण के बाद के गांवों की गहन पड़ताल ....

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