अरुणेन्द्र नाथ वमा

आकाश पर गड़ी आंखें, ठोस जमीन पर टिके पांव

जीवन के आठवें दशक में भी रचनाशील कोई संवेदनशील कवि जब स्मृतियों के दर्पण में निहारता है Subscribe Now

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