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इस ‘मेरी बात’ को लिखने बैठने से ठीक पहले एक साहित्यिक पत्रिका के संपादकीय को पढ़ मन खिन्न हो गया। खिन्न इसलिए कि धर्म की आंधी ने समाज को दर्पण दिखाने वालों के मन-मस्तिष्क में कब्ज़ा कर उन्हें मानवता को शर्मसार करने की हद तक अपनी चपेट में ले लिया है।
संपादक ने करोना के चलते स्वाथ्य सेवाओं की बदहाली पर अपनी बात रखी। उनके कथन में इस महामारी को रोकने में प....
