- श्रेणियाँ
- मतभेद
- संपादकीय
- धरोहर
- कहानी
- कविता
- पत्र
- रचनाकार
- पाखी परिचय
- पिछले अंक
- संपर्क करें
जो कामयाबी है उसकी खुशी तो पूरी है
मगर ये याद भी रखना बहुत जरूरी है
कि दास्तां हमारी अभी अधूरी है
बहुत हुआ है मगर फि़र भी ये कमी तो है
बहुत से होठों पे मुस्कान आ गई लेकिन
बहुत-सी आंखें हैं जिनमें अभी नमी तो है!
(15 अगस्त, 2007 संसद भवन में जावेद अख़्तर)
बीते माह, अगस्त 2019 में ऐसा बहुत कुछ हुआ जो भविष्य के भारत पर बड़ा असर डालने का माद्दा रखता है। दमदार बहु....
