- श्रेणियाँ
- मतभेद
- संपादकीय
- धरोहर
- कहानी
- कविता
- पत्र
- रचनाकार
- पाखी परिचय
- पिछले अंक
- संपर्क करें
महापावन बहुत धीमे बोल रहे थे।
बोल क्या रहे थे, जैसे गुनगुना रहे थे। उनके मुख से निकले संदेश बर्फ के फाहों की तरह सब के ऊपर बरसने लगे। बर्फ जब गिर रही होती है तो माहौल में गर्माहट रहती है। मौसम गुमसुम रहता है। वैसे ही शांत और गुमसुम थे सब जन, अधिकांश भिक्षु और अनुयायी आँखों बंद किए हुए। महापावन के मुख से वैदिक ऋचाओं की तरह निकलते हैं मंत्र, जो कविता....
