प्राकृतिक रूप मेंस्त्री संरचनापुरुषों से अलग है,लेकिन पितृसत्तात्मक परिवेश ने भी उसकी देह और दिल को अपनी सुविधानुसार ढाला जो प्रकृति प्रदत नहीं,हर स्तर पर उसकीभावनाएं,संवेदनाएं सोच-विचारकी निर्मिती भी ही अलग की जाती है,इसलिए उसके भीतर का ‘दरद’ सिर्फ उसे ही मिलता है औरसमझ भी वही पाती है|पारिवारिक संस्था की चारदीवारी के भीतर ही कैद स्त्रीअंतर्मुखी होती गई,या यूं क....
