डाॅ. सदानंद पाॅल

नोबेल प्राइज इन इकोनाॅमिक्स

जब से सोशल मीडिया का चस्का लगा है, कई विचारों से अवगत हो रहा हूं। कहीं से प्रेम मिल रहा है, तो कहीं से दुत्कार! सभी फेसबुकियों का टारगेट सरकार ही होती है यानी जिसकी वर्तमान में सत्ता होती है, उनके प्रति हम निष्ठुर हो जाते हैं। हम अपनी गलती को नजरअंदाज कर महंगाई,माॅबलिंचिंग आदि को लेकर उसे निकम्मा ठहराते हैं, भले ही हमारे गिरहबान के नीचे कालिख पुती हो....

मैं भी ....

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