जैसा कि हम बता चुके हैं कि अस्मितामूलक विमर्श सबसे पहले अपने से ‘अन्य’(भिन्न या अलग) को ‘एक्सक्लूड’ (अलहदा) करने में
सुधीश पचौरी
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।