चिट्ठी आई है

चिट्ठी आई है

‘पाखी’ का सितंबर-2019 अंक हाथों में है। उलट-पुलटकर विषय वस्तु का मुआयना करता हूं। अंक अपने नये कलेवर और सामग्री के साथ आकृष्ट करता है। संपादन में बदलाव के तुरंत बाद, एक अंक लिया था। सब देखकर लगा था ‘पाखी’ गयी। अब शायद दो-तीन अंकों के बाद बंद हो जाये! लेकिन नहीं! सितंबर अंक के ‘मेरी बात’ के अंतर्गत जो बात दिखी, उसनें सच में मन मोह लिया और लगा-जहां ऐसी 

सकारात्मकता होगी वहां म....

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