जीवन के पैंतीसवें वर्ष में लिखना रास आया। पहली कहानी (‘नामः अज्ञात’, ‘हंस’ दिसंबर-1995) और छठवीं (‘मर्सी किलिंग’, ‘हंस’ दिसंबर-1996 में प्रकाशित हुई तो आगे की यात्र पर इस टीस के साथ बढ़ा कि बहुत सारा समय बिना लिखे गंवाया जा चुका है। रचनात्मक दृष्टि से निष्क्रिय गंवाए समय की भरपाई अब असंभव है।
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