-अनुवाद: पापोरी गोस्वामी

रम्यभूमि

लेखक: डॉ- भवेंद्र नाथ सैकिया
 

 

जितनी देर तक संभव था, उससे भी काफी ज्यादा समय तक योगमाया ने इंतजार किया। इंतजार करते-करते उसे एक बार झपकी भी आ गई। लेकिन झपकी टूटते ही वो हड़बड़ाकर उठ बैठी। पलंग की खाली जगह को देखा और तुरंत कमरे से बाहर निकल गई।
बीच वाला कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। बाहर घुप्प अंधेरा। चांद अब जंगल की दूसर....

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