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बालकनी में बैठे-बैठे
वह निहारता है गुलमोहर के
ललछौंह फूलों को
और सोचता है जिंदगी के बारे में
क्या जिंदगी हमेशा रह सकती है
गुलमोहर के कमनीय ललछौंह
फूलों जैसी
या कभी-कभी उससे अलग
बिल्कुल अलग भी होना चाहिए उसे
जिंदगी कोई ग्लिास तो है नहीं
जिससे पानी पिए जाओ पिए जाओ
कोई फर्क नहीं पड़ेगा
उस ग्लिास से तय नहीं
हो ....
