सहम गई दुनिया सारी मय कातक मनुज समाज आज।
पूरा पढ़ेदेह में फाँस-सा यह समय है जब अपनी परछाईं भी संदिग्ध है 'हमें बचाओ, हम त्रस्त हैं'-- घबराए हुए लोग चिल्ला रहे हैं किंतु द
पूरा पढ़ेएक अंधी गुफा में हमें छोड़ आती है अंधेरा हमें जकड़ना चाहता है करवटें मन को थकाती हुई कोई दिलासा नहीं दे पाती इंतजार
पूरा पढ़ेदूब-शिखा पर अश्रु बहाती ओस-कण सूखे पेड़ की डाल से चिपका रज-कण संग समीर बेमंजिल भटकता डाल से टूटा पात और, चट्टानों से
पूरा पढ़ेलोग कहते हैं मैं दिखती हूं मां जैसी पर मुझे लगता है मां तू मुझमें ही आत्मसात होती जा रही है।
पूरा पढ़ेरोक लगी लेने पर सांस दिखती नहीं है कोई आस। बढ़ता जाता दुख का आकार कैसे गाएं गीत मल्हार।
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