इस रंगपुरुष के भीतर मौजूद अनेक प्रश्नों में से एक यह प्रश्न कि ‘वह नृशंस, जिसके रोम-रोम से फूटता अंधेरा बना देता है
राजेंद्र लहरिया
पूरा पढ़े
पूरा देखें
हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।