रेणु जीवन-जिज्ञासा को महत्व देते थे। जिज्ञासा ही हमें नित नूतन संधान को तत्पर करती है। रचनात्मक अन्वेषण सतत गतिशी
भारत यायावर
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।