रामकुमार तिवारी

 देशकाल      

खाली मैदान के उस पार से गुजरती सड़क पर लोग आ-जा रहे थे. बस स्टैण्ड पर माते की टी-स्टाल के सामने बेंच पर जहाँ जयंत बैठा था, वहाँ से चेहरे ठीक-ठीक नहीं दिख रहे थे, लेकिन गौर से देखने पर पहचान में आ जाते थे. साइकिल पर सवार डी.पी. को देखते ही जयंत ने तुरंत पहचान लिया. जिसने भी डी.पी. को साइकिल चलाते हुए देखा है, वह धूल भरी आंधी में भी पहचान जायेगा और देखते ही बोलेगा- वह देखो, साइकिल पर सवा....

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