प्रवीण मकवाणा

पीड़ाओं का प्रकाशन अभी शेष है !

अज्ञात भय से आक्रांत मैं चीखता-चिल्लाता हूँ 
तो अवचेतन से बाहर खड़ी 
विरक्ति मुझे अंक में भर लेती है।

मेरे मन-मरघट की शांति को भंग करतीं हैं 
मेरी आत्मा की चीत्कारें
और अंतस् का स्थैर्य पिघलता जाता है।

दुखों ने मेरे जीवन की प्रस्तावना लिखी है
अवसाद से मेरी जन्मना आसक्ति है
चिंताओं ने सींचा है चैतन्य
अपराध-बोध न....

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