“सचमुच यह कितना बड़ा राक्षसी षडयंत्र है कि हम धो-पोंछकर, काट-छील कर हर किसी को एक ही साँचे में घोंट-पीस डालते हैं कि उसकी सारी ‘अद्वितीयता’ समाप्त हो जाती है। सब एक दूसरे के प्रतिरूप देवता बने काँच के बक्सों में हमें घूरते रहते हैं। मृतात्मा के प्रति सम्मान प्रकट करने की सारी शब्दावली दयनीय रूप से एक जैसी होती है- निर्जीव, संवेदनहीन, भव्य और झूठ... हम उसे ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी द....