...आज मेरी आर्मेनिया- यात्रा पूरी हुई।
अब लिखने बैठा हूं तो इसका वृतांत भी पूरा हो ही जाएगा। इसमें बस एक चीज शायद कभी पूरी नहीं होगी, वह है इसकी पृष्ठभूमि सेअनवरत उठती एकअंतर्कथाजोमैरी की जुबान से जितनी बयां होती है, उससे कहीं अधिक उसकी नीली आंखों से झांकती है।
पूरा अतीत/ सारा दर्द/ पन्नों में है दर्ज / अंधा, गूंगा, बहरा/ पड़ा है निष्प्राण / कब का मरा / पड़ा रहेगा वह ऐसे ....