अपूर्व

मैं, संपादन और शोर का संसार

ने जब-जब ‘पाखी’ का संपादन संभाला अथवा परिस्थितियों ने मुझे इस दायित्व को संभालने के लिए विवश किया, एक प्रश्न ने मुझे हमेशा बेचैन किया है। प्रश्न मैं स्वयं से करता हूं, स्वयं ही उत्तर तलाशता हूं, कभी खुद को दिए उत्तर से संतुष्ट हो जाता हूं तो कभी लगता है अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए मैं सही उत्तर तलाश नहीं पा रहा हूं। मेरा प्रश्न खुद से होता है कि क्या मैं एक साहित्य पत....

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