स्वयं श्रीवास्तव

स्वयं श्रीवास्तव की कविताएं

(1)

छली गई मासूमियत तब 
जादूगरी सीख पाए हैं
रोए पहले बहुत बाद में ये
मसखरी सीख पाए हैं

नाच नचाता जादूगर ये
कठपुतली बन नाचा भी है
हाथ उठाना सीखा तब जब
गहरे छपा तमाचा भी है
 
सीखी बहुत बाद में हमने 
ये चुटकुले तमाशेबाजी
कितने दिन तो कविता का ही
अक्षर अक्षर बांचा भी है

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