प्रदीप सिंह गुसाईं

पांसा

एक थी लड़की उर्फ वे कुछ पल मैं, उन दो-ढाई महीने--- लू से झुलसती तपती प्यासी रेत पर घिसटता- सिसकता, जहां मेरे चारों ओर रेंगते मुझ से ही हजारों मनुष्य मेरी ही तरह घिसटते-सिसकते कुछ तलाश रहे थे--- घिसटते-सिसकते लोगों का वह एक पूरा काफिला--- जहां हम में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं था एक तानाशाह के सामने! झुकने और कोर्निश बजाने वाले तमाम लोग रेगिस्तान की इस तपिश से बचने के ....

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