अनवर शमीम

खर्राट

दिन पतझड़ के थे, जबकि हवा एकदम खामोश थी। चलते हुए सूखे पत्तों की चरमराहट भरी आवाजें कानों को खटक रही थीं। गिरां गुजर रहा था सूखे पत्तों को रौंदते हुए चलना। चलना तो था ही क्योंकि पार्क में पत्थर से बनी बेंच तक पहुंचने का यही रास्ता था। हम जल्द से जल्द इसे पार कर लेना चाहते थे। मगर राजेश मुझसे थोड़ा पीछे चल रहा था। वह चलते हुए कुछ बोल रहा था। उसकी आवाज इतनी धीमी थी क....

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