96 पृष्ठों में 46 कविताओं का यह संग्रह लघुकाय है, मगर इसके ‘अंतःकरण का आयतन’ विस्तृत है। आशिक और महबूब के ढांचे से मुक्त होकर इश्क का जो रूप बनता है उसके बारे में ‘जिगर’ ने कहा था कि ‘फैले तो जमाना है’। दुर्गा प्रसाद जी ने जमाने भर को आशिक की निगाह से देखा है। परिवार, प्रकृति, समाज और राजनीति के कुछ प्रसंगों को कविता का विषय बनाते हुए वे इश्क के मुकाम पर पहुंचे हैं। ब....