कृष्ण कल्पित

सुरजीत पातर: एक लरजता नीर था वो मर के पत्थर हो गया 

निराला और नेहरू

अबे, सुन बे, गुलाब,
भूल मत जो पाई खुशबू, रंगोआब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतराता है केपिटलिस्ट!

वरना क्या तेरी हस्ती है, पोच तू
कांटों से हà....

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