वह रविवार की ढलती हुई रात थी। सपना गहरी नींद में सो रही थी। अचानक ‘---भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे---!’ आरती के बोल, घंटी की घनघनाहट, स्नान करने के लिए एक-दूसरे की बुलाहट---। उसके कानों में गूंजने लगी।
सपना ने कसमसा कर तकिये से कान दबा लिए मगर उनींदा दिमाग अपनी रौ में चलने लगाµ
कितनी बार कहाµइस बस्ती को छोड़ दो---लेकिन नहीं---। जयंत साहब आलस के पुतले जो ठहरे। क....