मनीष वैद्य

मामूली इच्छाओं और सपनों से बुना उपन्यास

जीवन का वह हिस्सा हमारे अपने लिए सबसे ज्यादा चमकीला, पारदर्शी और बेहद साफ-शफ्रफाक नजर आता है, जिसमें हम दुनिया को अपनी तरह से देखने का अपना एक नया नजरिया बना रहे होते हैं, जिस वक्त हम अपने ख्वाबों को बुन रहे होते हैं या उनमें रंग घोल रहे होते हैं। जब हमारी छोटी-छोटी आंखों में दुनिया बड़ी, बहुत बड़ी दिखती है लेकिन हम उसे चंद कदमों में पार कर जाने का माद्दा लिए होते ....

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