अनुपमा तिवाड़ी

अनुपमा तिवाड़ी की पांच कविताएं

असली चेहरा

देश का झंडा

कई मर्तबा छुपा लेता है
हमारी संस्थागत कुटिलताएं
जैसे चंदन की बिंदी
छुपा लेती है 
किसी बाबू के रिश्वती कारनामे
मैं देखती हूं कि 
बुद्ध पगला गए हैं सारा राजपाठ छोड़ 
आकर बैठ गए हैं
भव्य इमारतों और पार्लरों में
महावीर को देखती हूं
जिन्होंने वस्त्र तक त्याग दिए 
वे बैठे हैं ....

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