मुकेश कुमार

कारसेवा से सरकार-सेवा तक

ये सौ प्रतिशत मिथ्य धारणा है कि हमारे गणमान्य पत्रकार हमेशा टूल किट या आईटी सेल के हिसाब से ही लिखते, बोलते, सोचते हैं। वे इतने विवेकशून्य भी नहीं हैं। वे मैन्यूफैक्चर्ड पत्रकार जरूर हैं मगर संपूर्ण रूप से नहीं। उनके निर्माण में कुछ मौलिक भी है, उनका अपना भी है। हर बार उन्हें ऊपर से निर्देश लेने की जरूरत नहीं होती। वे अपनी सहज बुद्धि और अनुभव से फैसला कर सकते हैं कि प्रस्....

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