इस महीने पाखी अपने जन्म के सोलहवें साल में प्रवेश कर गई। किसी पत्रिका की आयु पंद्रह वर्ष कम नहीं होती। खासकर किसी हिंदी साहित्यिक पत्रिका की। इस बीच कई पत्रिका बड़ी धूमधाम से निकलीं, कई खामोशी के साथ बंद हो गईं। इसी दौरान हिंदी साहित्य के वट वृक्ष कहे जाने वाले राजेंद्र यादव, नामवर सिंह, मैनेजर पांडेय, रमणिका गुप्ता, मंगलेश डबराल चल बसे। इनके होने मात्र से हिंदी की दुनिय....